Thursday, August 27, 2009

बम विस्फोट के बाद

बम बिस्फोट के बाद-
सहानुभूति के दो बोल मात्र,
घायल और मारे जाने की कीमत-
पचास,साठ हजार रूपए,या
एक डेढ़ लाख रूपए|
अस्पताल में घायलों और सम्बधियों के बीच-
शहद से मीठे दो बोल -
मंत्री और संतरी हाथ जोड़े हुए|
सबकी पीठ सहलायेगे|
दूसरे दिन सबेरे बडा सा फोटो अख़बार में छप जायेगा|
बैठक बुलाई जायेगी|
सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी कर दी जायेगी|
सुंदर पन्नो पर योजनाये सजायी जायेगी|
फिर किसी शहर, गली महोल्ला,बाजार में-
बम विस्फोट की खबर आएगी|
फिर यही सरकार की रणनीति दोहराई जायेगी |
कोरी सहानुभूति जताई जायेगी|

Tuesday, August 25, 2009

दिल्ली दिल में झाख

हम दिल्लीवासी दिल्ली को पेरिस बनाने का सपना देखते हैं,लेकिन अपने घरो के पास जमा पानी,जिसमे तमाम मच्छर हो रहे हो वो नहीं देखते न ही इधर उधर कूड़ा फेखने से कतराते है| पार्को में अपने कुत्तो को सुबह और शाम का मलत्याग कराते हैं|अपने घरो को साफ करके,दुसरो के घरो के आगे कूड़ा फेकने से नहीं कतराते| सडको पे जहाँ मर्जी आये थूक देते है| अफसोस तो इस बात का है आदमी लोग आज भी दीवारों और कोनो में मूतना अपनी शान समझते है और अपने आप को पढा लिखा समझदार इसान कहते हैं|
यू तो मालो की भरमार ने दिल्ली की शान बढाई है लेकिन इन मालो की वजह से जगह-जगह गंदगी और पानी की समस्या भी उत्त्पन हुई है| पुलों का जाल इधर उधर बिखर गया है लेकिन भीड़ में कोई कमी नहीं आई है| पुलों के आस पास अभी साफ सफाई का काम बाकी है|
दिल्ली में सरकारी स्कूल का वही हाल है जो आग्रजो के समय हिदुस्तानियों का था| दिल्ली में आग्रेजी बोलने वाला हिंदी बोलने वाले से ज्यादा काबिल समझा जाता है ये मेरा खुद का अनुभव है| हिंदी दिवस के दिन नेता हिंदी को ऐसे याद करते है जैसे विदेश में रहने वाले देश में रहने वाली अपनी माँ को मुसीबत में करते है| अपनी चीज़ को सुधारना के बजाय आज भी आग्रेजो की चीजो की नकल करने से नहीं कतराते|
दिल्ली के निगम स्कूल के हालत एक दम दयनीय है| वहा बच्चो के बेठने की व्यवस्था तक नहीं है| स्कूल की साफ़ सफाई का भी बुरा हाल है|दिल्ली में जगह जगह जो मेट्रो पुल बन रहे है उससे जन सामान्य को सुविधा तो हो रही है लेकिन उससे लोगो परेशानी भी हुई है||
न्यू डेल्ही के रेलवे स्टेशन के पास गंदगी का साम्राज्य इस कद्र फे़ला है पुछो मत| उस ओर हमारे नेताओं का ध्यान इस लिय नहीं जाता क्योकि वहा से कोई विदेशी नेता या नेता नहीं आता| हा जब कभी किसी नेता को आना होता है तो साफ-सफाई कर चुना डाल दिया जाता है ओर सरकारी शोचायलो पर भी तभी ध्यान दिया जाता है| जनसामान्य के लिय कोई विशेस ध्यान नहीं दिया जाता उसे भी अब इन सब चीजो की आदत पड गयी है| अफसोस तो इस बात का है हम सब भी एक जुट होकर इसके लिय कोई शिकायत नहीं करते ना शिकायत करने वाले का साथ देते है|
| पुराने को मिटा कर नया बना देने से दिल्ली का सुधार नहीं होगा, जरूरत है पुराने में सुधार करके उसे सुन्दर और स्वच्छ बनाने की| नयी चीजो के बनने से गंदगी तो फेल रही है, साथ ही पुरानी चीजो का भी बुरा हाल हो रहा है| पता नहीं क्यों दिल्ली सरकार ये सोचती है कि पुलों ओर मेट्रो पुल के बनने से दिल्ली में चार चाँद लग जायेगे उसे ये दिखाई नहीं देता कि जब तक दिल्ली में कार और बाहर से आने वालो पर रोक नहीं होगी तब तक भीड़ पर काबू पाना और दिल्ली का सुधार मुश्किल है| दिल्ली में बाहर से आने पर रोक लगनी जरूरी है यदि इस ओर सरकार ध्यान नहीं देती है तो वो दिन दूर जब ये कहावत दिल्ली पर सच हो जायेगी चार दिन कि चांदनी फिर अँधेरी रात|
जितना ध्यान सरकार दिल्ली पर देती उसका चोथाई हिस्सा ध्यान अगर आस पास वाले गावो और इलाके पर दे उनको सुविधाए दे वहा भी पुलों और सडको, स्कूल और तकनीकी संस्थाओ का निमार्ण कराये तो भी शायद भीड़ पर काबू पाए|
मॉल से रुपया पैसा कमाया जा सकता है दिल्ली को सुधार नही जा सकता| मॉल बहुत बन गये इन पर रोक लगनी चाहिए और इनकी जगह पार्को और हरे-भरे पेड़ पोधे लगाने चाहिए जो पैसा मॉल पर सरकार खर्च कर रही है उसे सरकारी स्कूल और निगम स्कूल पर खर्च होना चाहिय और दिल्ली की पुरानी चीजो के सुधार में तभी दिल्ली का भला होगा वरना भगवन ही मालिक है|