Tuesday, March 24, 2009

दर्द

जब दर्द हद से बढ़ जाता हैं,
तब अश्को में ढल जाता हैं|
जो दिल में छिपा रह जाता हैं,
वो रोग में बदल जाता हैं|
दर्द को अश्को में बह जाने दो,
या पन्नो में बिछ जाने दो|
या पास हैं कोई साथी प्यारा,
उस संग घुल-मिल जाने दो|

Thursday, March 19, 2009

सिसकती कश्मीर

रोती है कश्मीर,दिल उसका उदास है|
कल तक सब ठीक था आज बदहाल हैं|
नेता आये, वादे आये,बात बनाये चले गए|
कश्मीर पर राजनीति,उल्टी-सीधी पक रही,
घर बेठे तमाश देखे हम,कश्मीर धूं-धूं जल रही|
मैं भी उन लोगो में शामिल हु जो पेपर और मैगजीन में कश्मीर के बारे में पढ़ कर दो मिनट उदास हो कर चुप हो जाते हैं,या चार लोगो में बाते करके अपनी भड़ास निकलते हैं| क्यों हम और आप कश्मीर को भूलते जा रहे हैं कश्मीर की खूबसूरत वादियों को क्यों भूल रहे हैं क्या वहा के फलो,जडी-बूटियों के फायदे नुकसान के बारे में हम-तुम नहीं जानते| कश्मीर की कढाई तो देश-विदेश में मशहूर हैं उन्नत किस्म की केसर भी इन्ही वादियों और मिट्टी का खूबसूरत तोहफा हैं जो खुदा ने हमे दिया हैं|
आज जम्मू और कश्मीर की जो स्थिति हैं उस पर हम-सब को कुछ सोचने की नहीं करने की जरूरत हैं लेकिन शुरुआत कौन करे हम में से कोई हिन्दू है कोई मुसलमान है कोई सिख,ईसाई | हिन्दुस्तानी या भारतीय नहीं अगर होते तो समस्या का समाधान हो जाता| हम सब ने एक स्वर में कभी कश्मीर के लिय आवाज नहीं उठाई|
कभी-कभी कश्मीर से जान बचाकर कर आये लोग जो दिल्ही और जगह-जगह रह रहे है उनसे बात-चित करके एक दो बार वहाँ के हालत पता लगे एक बार दो युवा से मेरी बात-चित हुई उन दोनों से बात करके मेरा दिल उदास हो गया ज्यादा तो में कर नहीं सकती थी 100 रु देकर मैं ने अपना दिल हल्का कर लिया लेकिन बाद में भी सोचने के सिवा मैं क्या कर सकती थी| जब मैं अपनी वर्ग की महिलायों से बात करती हु तो सब मुझे पागल समझते हैं फिर मैं सोचती हु कोई बात नहीं इनकी नज़र में पागल ही सही|
मुझे याद है जब में आठ या नौ साल की थी तब मेरे बाउजी कश्मीर के मीठे सेब और अखरोट लाये थे| एक बार कश्मीरी कपडे वाला आया उससे हमने कश्मीरी शाले और शलवार कुरता का कपडा लिया,मुझे याद है उस कपडे वाले का दर्द भरा चहेरा उसकी गरीबी जो उस तपती दोपहर में उसे कपडे बचेने के लिए और घर वालो को जिंदा रखने के लिए मजबूर किये हुवे थी| इससे ज्यादा और क्या कहु|
मैं सिर्फ इतना चाहती हु जम्मू और कश्मीर हमारे देश का अभिन्न हिस्सा हैं उसकी समस्या का समाधान जरूरी है इस बारे में हम सब को भारतीय बन कर सोचना चाहिए, हिन्दू मुस्लिम बन कर नहीं| इन्सान के खून का रंग लाल है और स्नेह{प्यार}का रंग भी लाल| सोचो तो दर्द का अहसास भी एक तो फिर हम अलग-अलग कैसे हुवे दिल और दिमाग से सोचो हम सब एक हैं|

Wednesday, March 18, 2009

तेरी मेरी कहानी

ज़ब भी मैं सुबह उठती हु सोचती हु ये करुगी वो करुगी लेकिन क्या मैं वो सब पूरा कर पाती हु नहीं क्यों?क्योकि मैं अपने इरादे की पक्की नहीं हु,लेकिन मैं अपना काम खुद पूरा करना चाहती हु पति की मदद के बिना कबतक पति की मदद लेते रहेगे और डाट सुनते रहेगे| कभी-कभी पति की डाट बहुत बुरी लगती है और उनकी किसी प्रकार की मदद भी जहर लगती है मेरे ये शब्द शायद उन्हें बुरे लगे लेकिन जो लगता है वोही तो लिखुगी| मैं ही नहीं बहुत सी औरते ऐसा ही सोचती है मुख से कहती नहीं हम औरते की नज़र में पति ही सब कुछ है पति की नज़र में हम क्या है{मेरे पति मुझे आज़ादी देते है और कहते है तुम जो मर्जी आये करो,ऐसा कुछ मत करना जिससे बच्चे और मुझे परेशानी हो मैं उनसे कहती हु तुम्हारी आज़ादी का मुझे क्या फायदा,एक तो मुझे इंग्लिश अच्छी आती नहीं,बाहरी दुनिया की इतनी समझ नहीं,पति ने आज़ादी दे कर अपना पल्ला छुड़वा लिया,घर और बच्चे देखना उसके बाद काम और ससुराल की खिच-खिच पिच-पिच इन के बीच अपने लिए कुछ करना एक शादी शुदा औरते के लिए मुश्किल होता है जो कान आख बंद कर ले वो ही कर सकती है या कुछ हमारी तरह जो करना चाहती पर डरती है किससे पति से,समाज या सास से या खुद से}|
मैं अपने इरादे की पक्की होना चाहती हु हो सकती हु,मुझे पता है अगर मैं अपना बारे में एक इन्सान की तरह सोंचू तो मेरी समस्या हल हो जायेगी लेकिन मैं एक नारी बन कर सोचुगी तो समस्या शायद हल ना हो| हम नारी ऐसा क्यों नहीं सोचती| मेरे साथ साथ आप सब नारी भी इन्सान बनकर अपने बारे में सोचो तो शायद हम सब नारी ज्यादा खुश और तरक्की कर पाए अपनी और समाज की| ऐसा मुझे लगता है शायद सही हो शायद ना भी लेकिन एक बार ऐसा सोचने और करने में क्या बुराई है|
सुबह आखं खुलने से लेकर रात सोने तक हम- सब औरते कितना अपने लिए सोचते है और कितना अपने परिवार के लिए ये हम सब औरते अच्छी तरह जानती है| परिवार के लिए सोचना ठीक है लेकिन अपने लिए भी सोचना चाहिय हर वक्त पति, बच्चे और ससुराल इसके सिवा कुछ नहीं क्यों? जब कभी में इस बारे अपनी सहेलियों से पूछती हु तो सबका एक ज़वाब होता है,यार अब क्या अपने बारे में सोचे, इतना वक्त तो आटा-रोटी में गुजर गया,बाकी का भी गुजर जायेगा|कभी-कभी में भी ऐसा सोचती हू,लेकिन क्यों हम-सब ऐसा सोचते हैं|
जीवन बार-बार नहीं मिलता,इस छोटे से जीवन में ही हमे औरो के लिए जीते हुए,करते हुए,अपने लिए भी कुछ करना होगा|
शायद कमजोरी हम औरतो के अंदर है जिसने जेसा कहा मान लिया अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहींकिया पढ़-लिख कर भी दूसरों पर आश्रति होना अपनी खूबी समझते हैं हम औरते,{कुछ एक आध को छोड़ कर }कुछ एक आध औरते है जो अपने निर्णय खुद लेती है, गलतियाँ भी करती है{लेकिन इसांन गलती करके ही सीखता है ये हम सब जानते है}खूब सोचती भी है कभी-कभी बहुत रोती भी है ज़ब कोई सामान ठीक नहीं आता और पति कुछ नहीं कहते,चुप रहते है, क्योकि ऐसे पति जानते है आज गलती की, कल जरुर सीख जायेगी| {मेरी पति ऐसे ही है मेरे पति जेसे और भी पति होगे जो अपनी पत्नियों को सीखाने में रूचि रखते होगे|
हमारे अंदर ही ख़ुशी है,हमारे अंदर ही दर्द, हमारे पास ही ताकत,जरूरत है उसे पहचानने की, कोशिश करे तो सब हो जायेगा| किसी एक को आगे आने ज़रूरत है| थोडा मै कोशिश कर रही हू थोडा आप करो| हम सब औरते अपने बारे में भी सोचे और,घर परिवार के बारे में भी,अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए अपने लिए भी सोचे आप क्या चाहती है?
{ कुछ गलत लिखा हो तो माफी चाहती हू}

Saturday, March 7, 2009

आप सब की आलोचना,प्रशसा के लिय धन्यवाद| उम्मीद है आगे भी आप सब का सहयोग प्राप्त होता रहेगा| अपनी तरफ से मैं अच्छे से अच्छा लिखने की कोशिश करूंगी| आप सब लोगो ने मेरासवेरा के लिय जो समय निकला उसके लिय धन्यवाद|

Thursday, March 5, 2009

पाठको से निवेदन

मेरी रचनाओं में अभी गलतियाँ हो रही है जिसके लिए में माफी चाहती हूँ| आप लोगो के सहयोग से जल्दी ही अपनी गलतियाँ सुधार लूगी कृपया थोडा समय दीजिए|

फुलझडी

१. एक कुत्ता दुसरे कुत्ता का दर्द समझ जाता है,
पास बैठ सहलाता,दुम हिलाता है|
एक आदमी दुसरे आदमी का दर्द समझ,
नहीं पाता है,
पास से देख कर निकल जाता है सिर्फ,
बात बनाता है|
२. पराये फिर भी समझ जाते हैं,
अपने सिर्फ दर्द दे जाते है|
परायो को छोड़ना पड़ता हैं,
अपनों को भोगना पड़ता हैं |
३.प्यार चुंबन या मिलन नहीं,
प्यार कोई चुंभन नहीं,
प्यार एक कोरा कागज़ हैं,
जिसे प्यार ही समझ सकता हैं,
जिसमे कुछ लिखा नहीं लेकिन-
सब कुछ लिखा हैं जिसे प्यार ही पढ़ सकता हैं|

Monday, March 2, 2009

एक तमन्ना


एक तमन्ना उड़ मैं जाऊ,
नील गगन को छु के आऊ|
एक इच्छा ऐसी मन में,
छिपू किसी को नज़र न आऊ|
एक ख्वाहिश उठी है मन में,
ऐसी बिखरू सिमट न पाऊ|
एक तमन्ना ऐसी मन में,
ऐसी उलझू,उलझती जाऊ ,
किसी से सुलझ न पाऊ|
एक इच्छा जागी है मन में,
नये साचे में ढल के ऑऊ,
सबके मुख पे हंसी बन छाऊ,
आखिरी तमन्ना है इस मन की-
कली,झरना,बादल,तितली,
या फिर पर्वत बन जाऊ|
कली बन बाग़ महकाऊँ,
झरना बन बहती जाऊँ,
पर्वत बन स्थर हो जाऊँ|
हर किसी के काम मैं आऊँ|

savera