Saturday, January 31, 2009

पुनर्जन्म

एक महिला अपने कुत्ता को इस तरह बुला रही थी
कम ओंन जोनी
कम ओंन जोनी
सिट इन कार ,
सिट इन कार डार्लिंग
माय बेबी, स्वीट डार्लिंग

पास उसे एक बच्ची
निहार रही थी
सोच रही थी
मैं भी होती कुत्ता या कुत्तिया
मुझे भी मिलता प्यार ,सुबह-शाम मालिको की पड़ती फटकार
खाने को मिलती दुध - रोटी , सैर करने को कार और मीठा प्यार

काश: दुबारा जनम हो तो कुत्ता कुतिया ही बनाना
इन जैसे अमीरों के घर, मेरा घर बसाना

Monday, January 26, 2009

सास-बहू का मायाजाल दर्शक बेहाल

सास-बहू के सीरियल कब हॊंगे खतम।
दॆख-दॆख दर्शक वर्ग आ गया है तंग॥
दुख-दर्द गमॊं मॆं भी मेक-अप मॆं नजर आती हैं।
खुले कॆश, रेशमी साड़ी पहन किचन मॆं खाना बनाती हैं॥
कहीं-कहीं तॊ पात्र मर कर भी जिन्दा हॊ जाते हैं।
प्लास्टिक सर्जरी कॆ बाद पूरे ही बदल जाते हैं॥
सीरियलॊं मॆं ईर्ष्या, शक, षड्यंत्र भरॆ नजर आते हैं।
भॊली-भाली जनता कॊ तड़क-भड़क सॆ रिझातॆ हैं।

बच्चे जवान हॊ जातॆ हैं, पॉप-मॉम वैसे ही नजर आतॆ हैं।
दादा-दादी, नाना-नानी की झुर्रियां कहां छिपातॆ हैं॥
अचानक सौतन का बॆटा बीच मॆं आ जाता है।
सीरियल कॊ लंबा करने का उन्हे हक मिल जाता है॥
हर औरत कॊ सीरियल मॆं मॉडर्न दिखाया जाता है।
हर आदमी का अतिरिक्त संबंध दिखाया जाता है॥

न जाने जनता इन सीरियलॊं कॊ कैसे पचाती है।
न चाहतॆ हुए भी दॆखती, सॊचती, पछताती है॥
न चाहतॆ हुए भी उन्गली उन चैनलॊं पर रुक जाती है।
चिकनी-चुप़ड़ी, अधनंगी तस्वीर जिसमॆं नजर आती है॥
जाने अपने सीरियल मॆं क्या दिखाना चाहते हैं।
शुरुआत तॊ अच्छी करते हैं जल्द ही मगर खॊ जातॆ हैं॥

अपनी अपनी मजबूरियाँ

एक युवती।
तंग ब्लाउज़॥
डीप गला।
छॊटी स्कर्ट॥
तन कम ढका।
ज्यादा उघढ़ा॥
कटे बाल।
हॊंठ लाल॥
कन्धे पे बैग।
हाथ में कुत्ता॥
मॊबाइल पर।
बात किये जा रही थी॥
सड़क पार जा रही थी॥।

दूसरी युवती।
फ़टा ब्लाउज़।
मैली घघरिया।
बिखर आंचल॥
कम उमरिया।
उलझॆ बाल।
चिपकॆ गाल॥
सूखे हॊंठ।
नंगे पांव।
नीची नजर।
शरमा रही थी।
सड़क पार जा रही थी॥


देख मॉडल की तरुणाई।
क, ख, ग ने ली अंगड़ाई
और क ने सीटी बजाई।
मॉडल ने सैंडल उठाई।
कुत्ते जॉनी कॊ किया इशारा।
डर कर क, ख, ग ने किया किनारा॥
मॉडल पैसे वाली थी।
साथ उसके गाड़ी थी।
बैठ गाड़ी में निकल ली।
अब उस गरीब की बारी थी।
जॊ अबला बॆचारी थी।
न उसकॆ पास गाड़ी थी।
न कुत्ते की चौकीदारी थी।
क ने सीटी, ख ने कॊहनी मारी।
ग ने आंचल पकड़ा।
ये सब दॆख मेरा दिल धड़का।
साथ नहीं था मेरे कॊई लड़का।
मॆं मध्यमवर्गीय नारी थी
साथ नहीं मेरे भी गाड़ी थी।
मॆं भी एक बेचारी थी।
इज़्ज़त मुझे भी प्यारी थी।
स्वतंत्र भारत की परतंत्र नारी थी।
तॆज-तॆज कदमॊं से घर का रुख किया।
न जाने उस बॆचारी का
क, ख, ग ने क्या किया॥
क, ख, ग ने क्या किया॥

Sunday, January 25, 2009

हरा दर्द

निठारी कांड को आप सब भूल गए क्या
नही ?
तो फिर दुबारा ऐसा हो इस के लिए क्या किया आप ने हम ने
मेंने दर्द को तस्वीर में ढाला आंसू से किया रंग, दर्द आज भी है संग