आज कल लोग घर में रहते है 'या'
घर लोगो में रहता है ,
आज कल इसी उलझन में मन -
रहता है |
बड़े-बड़े घरो में छोटे-छोटे लोग -
छोटे -छोटे घरो में बड़े -बड़े लोग ,
ऐसा मन मेरा कहता है |
बड़े घरो में ऐशो-आराम है -
सभी सुविधा का साजो सामान है ,
फिर भी इंसा बेचैन, परेशान है |
ऐसा भी मन को लगता है |
छोटे -छोटे घरो में घुटे -घुटे -
लोग, भीचे -भीचे जगह -
में लड़ते - भिड़ते लोग |
कभी उदासी कभी खुशी में -
दिखते हुए लोग -
ऐसा आखो से दिखता है |
घर के लिए लड़ते भिड़ते लोग -
अपनों को लुटते-खासुटते-
दर्द पहुचाते लोग -
बड़े घरो में छोटे -छोटे दिल
वाले लोग,
बड़े से कमरे में बुत बने लोग-
खुद को खोजते -टटोलते हुए लोग |
कभी कभी ऐसा लगता है |
लोग घरो में रहते है ,
या घर लोगो में रहता है |
इसी कशमाकश में दिल -
आज कल रहता है |
Monday, February 21, 2011
Thursday, February 3, 2011
कुछ भी
पिछले दो महीनो से मै अपने बेटे के स्कूल जा रही हु , मेरा रास्ता पुष्प-विहार से शुरू होकर मूलचंद के फलाई-ओवर तक जाता है | पिछले दो महीनों से ही मै एक औरत उम्र ४०-४५ एक पेड़ के नीचे अपनी ज़रूरत का सामान लेकर ,अपने आस-पास की जगह बहुत अच्छी तरह साफ करके अपना सामान लगाकर रहती है | साधारण रंग -रूप सामान्य कद-काठी की उस औरत को मै रोज रेड लाइट पर जब भी ऑटो रुकता है देखती रहती हु, बिना पैसे लिए और मागे वो अपने कम इतनी मेहनत और ईमानदारी से करती है उतनी मेहनत से करोड़ो डकारकर भी लोग नहीं करते |
उसके सामान मे एक छोटी सी सुराही उस पर छोटा सा गिलास, पेड़ से नीचे एक गद्दा उस पर एक मैली चादर उस पर फटी सी रिजाई गद्दा ज्यादा अच्छी हालत मे नहीं है | इसके साथ ही एक छोटी सी गठरी है जिसमे शायद उसके कुछ कपड़े होगे या उसकी कुछ यादे |
मे उसे रोज देखती हु कभी उदास हो जाती हु और कभी खुश होती हु , उदास ये सोचकर होती हु उसकी ये हालत किसने बनाई, क्या वजह है जो इस तरह रह रही है ना किसी को देखती है ना किसी से बात करती है बहुत बार सोचा उससे बात करू मगर मै कायर अभी तक ऐसा नहीं कर पाई न ही किसी और कायर को उससे बात करते देखा है | मैने उसे कभी आसू बहाते नहीं देखा इस लिए खुश हु लेकिन मै जानती हु अन्दर वो घुट-घुट कर रोंती होगी जब सारी दिल्ली सोती होगी |
पेरिस बनी इस दिल्ली मे हर इन्सान इतना व्यस्त हो गया है वो कुछ भी नहीं सोच रहा है अपने आस पास हो रही हरकतों पर अफसोस है न दुःख , ना वो ये सोच रहा है अपने आने वाले कल को हम क्या दे रहे है उसे बस आज का मनोरंजन चाहिए फिर चाहे जो भी करना पड़े |
जाती हुई ठण्ड में किसी कों उस औरत पर आज दया आ गई है आज उसके पास एक छोटी सी घटिया भी है धन्य है दिल्ली | उस घटिया के आस पास इतनी सफाई है जितनी बड़े बड़े मौल के आस-पास ढूडने से भी नही मिलेगी |
उसके सामान मे एक छोटी सी सुराही उस पर छोटा सा गिलास, पेड़ से नीचे एक गद्दा उस पर एक मैली चादर उस पर फटी सी रिजाई गद्दा ज्यादा अच्छी हालत मे नहीं है | इसके साथ ही एक छोटी सी गठरी है जिसमे शायद उसके कुछ कपड़े होगे या उसकी कुछ यादे |
मे उसे रोज देखती हु कभी उदास हो जाती हु और कभी खुश होती हु , उदास ये सोचकर होती हु उसकी ये हालत किसने बनाई, क्या वजह है जो इस तरह रह रही है ना किसी को देखती है ना किसी से बात करती है बहुत बार सोचा उससे बात करू मगर मै कायर अभी तक ऐसा नहीं कर पाई न ही किसी और कायर को उससे बात करते देखा है | मैने उसे कभी आसू बहाते नहीं देखा इस लिए खुश हु लेकिन मै जानती हु अन्दर वो घुट-घुट कर रोंती होगी जब सारी दिल्ली सोती होगी |
पेरिस बनी इस दिल्ली मे हर इन्सान इतना व्यस्त हो गया है वो कुछ भी नहीं सोच रहा है अपने आस पास हो रही हरकतों पर अफसोस है न दुःख , ना वो ये सोच रहा है अपने आने वाले कल को हम क्या दे रहे है उसे बस आज का मनोरंजन चाहिए फिर चाहे जो भी करना पड़े |
जाती हुई ठण्ड में किसी कों उस औरत पर आज दया आ गई है आज उसके पास एक छोटी सी घटिया भी है धन्य है दिल्ली | उस घटिया के आस पास इतनी सफाई है जितनी बड़े बड़े मौल के आस-पास ढूडने से भी नही मिलेगी |
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