Tuesday, December 1, 2009

उम्र का तन्हा सफर

उम्र का तन्हा सफर अब कटता नहीं,
दिल को भी अब कोई जचता नहीं|
यू तो मिलते है हंस के सभी से -
दिल से दिल कोई मिलता नहीं |
जो आखो से दिल में उतरते है -
वो दिल को कभी मिलता नही|
हम आखो से दिल को पढ़ लेते है-
इसलिय हमे कोई पढ़ता नही|
दिलो से दिल आज दूर हो गए है-
प्यार को प्यार कोई समझता नहीं|
पढ़ ले ठीक से जो दिल पूर्णिमा
ऐसा दिल आज कोई दिखता नहीं|

Monday, November 30, 2009

एक तस्वीर

हमारे रेलवे के सफाई कर्मचारी सफाई रखे न रखे पर ये छोटे -छोटे बच्चे अपने पेट भरने के लिए अपनी कमीज से रेल के अंदर की सफाई करते नज़र आ जायेगे| ये एक ऐसे ही बच्चे की तस्वीर है| इसकी आखो में भी एक सपना है|शायद कभी न कभी इस पर किसी मेहरबान की नजर इस पर पड़ेगी औरइसकी भी दुनिया बदलेगी|

Sunday, November 29, 2009

अपनी अपनी सोच

एक बार हम दोस्ते-दोस्ते मिल के मन्दिर गयी,वहां हमने भगवान को प्रसाद चढाया| सब अपनी मस्ती में गुम थे, वहा बैठे तमाम भिखारी को सबने प्रसाद दिया और आगे बढ़ गयी मै पीछे थी मेरी निगाह एक ऐसे भिखारी पर पड़ी जिसके हाथ नहीं था ( ऐसा नहीं था कि उनने उस भिखारी को नहीं देखा पर उसे देख कर वो बोली अरे इसके तो हाथ ही नहीं इसको प्रसाद केसे दू इसका तो कटोरा भी नहीं ये कहकर वो हंसकर आगे बढ़ गयी)मेरी निगाह उसी भिखारी पर अटक गयी मै उसके पास तक गयी उसे देखकर बोली प्रसाद ---- ये कहकर उसकी तरफ देखा उसने शाल से अपना कटा हाथ निकला जो कोहनी से थोडा ऊपर तक नहीं था मैने उसके उसी हाथ पर प्रसाद रख दिया उसने दुसरे कटे हाथ की सहायता से उस प्रसाद को अपने मुख में डाल लिया| जब तक मैंने सडक पार की वो मुझे मैं उसे देख रहे थे| उसे प्रसाद खिला कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई मेरी दोस्ते को मैं पागल लगी ये पागल पन मुझे अभी भी याद है और अभी भी मैं ये पागल पन करती हु|

Thursday, November 26, 2009

कांच और दिल

कांच के टूटने की आवाज होती है|
दिल के टूटने की नहीं|
टुटा हुआ कांच सबको दिख जाता है,
टुटा हुआ दिल किसी-किसी को ही -
दिखता है|

Tuesday, November 24, 2009

कुछ नही रखा सिर्फ़ दिल लगाने में

बहुत कुछ है इस जमाने में -
कुछ नहीं रखा सिर्फ दिल लगाने में|
लगा के दिल,आखो को रुलाओगे-
खुद को भी ढूढ़ नहीं पाओगे|
ना आस पास किसी को पाओगे|
तब ज़माने की याद आएगी-
दिल से बड़ा दर्द नज़र आएगा-
फिर खुद को जान पायेगा|
उठा के कदम जब बढाओगे|
कोई ना कोई मिल जाएगा,
दर्द बाटने के लिए|
कुछ नहीं रखा घुट घुट के जिए जाने में
बहुत कुछ है इस जमाने में
कुछ नहीं रखा सिर्फ दिल लगाने में|
लगा के दिल किसने क्या पाया है ,
लगा के दिल अपनों को भुलाया है|
दिल ने दिल को जब-जब ठुकराया है,
ज़माने से कोई एक साथ आया है|
कुछ नहीं कीमत यहाँ दिले-जज्बात की,
कीमत है जमाने में हर एक बात की|
विरले ही दिल को दिल से पढ़ पाते है,
लाखो में एक दिल को दिल से चाहते है|
हर किसी को सज़ा मिलती है दिल लगाने की-
फिर क्या फायदा दिल को तडपाने से -
बहुत कुछ है इस जमाने में -
कुछ नही रखा सिर्फ़ दिल लगाने में

Tuesday, October 27, 2009

सुन्दरता मत खराब करो


हम शहर वाले लोग अपने शहर को साफ नही रख सकते, जहा घुमने जाते है वहा भी कूड़ा फेलाने से नही कतराते|जो स्थान हमे सुकून पहुचाते है हम पयर्टक वहा गंदगी फेलाते है कितने अफसोस की बात है अपनी मस्ती में गुम हम सब भूले रहते है|मस्ती जी भरकर करो लेकिन सुंदर स्थानों को सुंदर रहने दो|

Monday, October 26, 2009

माँ की ममता


अपनी गोदी में बच्चा छिपाए
तारे गिन रात बिताये
माँ सी ममता कौन लुटाये
माँ बच्चे का प्यार अनूठा|
सच्चा सच्चा नही ये झूठा||

Tuesday, September 29, 2009

मेरी नज़र में दिल

दिल के टूटने की आवाज नहीं होती,
लेकिन चोट बहुत गहरी होती है|
इस चोट से कुछ सम्भल जाते है,
कुछ को ये चोट बर्दाश्त नहीं होती|

लाखो में कोई एक चेहरा-
मन को भाता है|
हर तरफ आखो को फिर-
वही नजर आता है|

यू तो प्यार हर कोई करता है,
लेकिन प्यार को प्यार कोई-कोई करता है|

यू तो हर कोई हर किताब पढ़ सकता है-
लेकिन दो किताब कोई -कोई ही पढ़ सकता है-
उन किताब के नाम है- प्यार, दिल|

खूबसूरती उपहार में नहीं देने वाले के-
दिल में होती है जिसका दिल जितना सुंदर,
होगा उसका उपहार उतना ही खूबसूरत होगा|

Thursday, September 24, 2009

कुछ मेरी सुनो

इन्सान को इन्सान समझा जाय,
उसके दर्द को दर्द|
किसी को रूपये से ना तोला जाय,
यानि रूपये से बड़ा ना समझा जाय|
उसके गुण से उसे तोला जाए|
भगवान को भोग लगना जरूरी है -
लेकिन भूखे को भोजन करना-
उससे जरूरी है|
हम सब अपने आप को सुधार ले सब ठीक हो जायेगा|
हर कोई दुसरे की भावनाओं को समझे -
अपनी बात दुसरे पे ना थोपे|
दुसरे की गरीबी का मजाक ना उडाये
रुपया किसी का मित्र नही|
रंग रूप पर घमंड ना किया जाय,
कभी भी कुछ हो सकता है|
हर एक बात दिमाग के साथ साथ,
दिल से भी सोचे|
प्यार को किसी धर्म से ना जोड़े
प्यार का रंग रूप एक है|
सभी से प्यार करे और प्यार,
करने वालो की कद्र करे-
प्यार को जाति-धर्म से ऊपर
उठ कर देखे|
हर और शान्ति हो जायेगी|

Monday, September 14, 2009

हिंदी दिवस

तुम भूले हम भूले,हिंदी को हम सब है भूले|
हिंदी का करे सम्मान,इसी में है देश का मान |

Thursday, August 27, 2009

बम विस्फोट के बाद

बम बिस्फोट के बाद-
सहानुभूति के दो बोल मात्र,
घायल और मारे जाने की कीमत-
पचास,साठ हजार रूपए,या
एक डेढ़ लाख रूपए|
अस्पताल में घायलों और सम्बधियों के बीच-
शहद से मीठे दो बोल -
मंत्री और संतरी हाथ जोड़े हुए|
सबकी पीठ सहलायेगे|
दूसरे दिन सबेरे बडा सा फोटो अख़बार में छप जायेगा|
बैठक बुलाई जायेगी|
सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी कर दी जायेगी|
सुंदर पन्नो पर योजनाये सजायी जायेगी|
फिर किसी शहर, गली महोल्ला,बाजार में-
बम विस्फोट की खबर आएगी|
फिर यही सरकार की रणनीति दोहराई जायेगी |
कोरी सहानुभूति जताई जायेगी|

Tuesday, August 25, 2009

दिल्ली दिल में झाख

हम दिल्लीवासी दिल्ली को पेरिस बनाने का सपना देखते हैं,लेकिन अपने घरो के पास जमा पानी,जिसमे तमाम मच्छर हो रहे हो वो नहीं देखते न ही इधर उधर कूड़ा फेखने से कतराते है| पार्को में अपने कुत्तो को सुबह और शाम का मलत्याग कराते हैं|अपने घरो को साफ करके,दुसरो के घरो के आगे कूड़ा फेकने से नहीं कतराते| सडको पे जहाँ मर्जी आये थूक देते है| अफसोस तो इस बात का है आदमी लोग आज भी दीवारों और कोनो में मूतना अपनी शान समझते है और अपने आप को पढा लिखा समझदार इसान कहते हैं|
यू तो मालो की भरमार ने दिल्ली की शान बढाई है लेकिन इन मालो की वजह से जगह-जगह गंदगी और पानी की समस्या भी उत्त्पन हुई है| पुलों का जाल इधर उधर बिखर गया है लेकिन भीड़ में कोई कमी नहीं आई है| पुलों के आस पास अभी साफ सफाई का काम बाकी है|
दिल्ली में सरकारी स्कूल का वही हाल है जो आग्रजो के समय हिदुस्तानियों का था| दिल्ली में आग्रेजी बोलने वाला हिंदी बोलने वाले से ज्यादा काबिल समझा जाता है ये मेरा खुद का अनुभव है| हिंदी दिवस के दिन नेता हिंदी को ऐसे याद करते है जैसे विदेश में रहने वाले देश में रहने वाली अपनी माँ को मुसीबत में करते है| अपनी चीज़ को सुधारना के बजाय आज भी आग्रेजो की चीजो की नकल करने से नहीं कतराते|
दिल्ली के निगम स्कूल के हालत एक दम दयनीय है| वहा बच्चो के बेठने की व्यवस्था तक नहीं है| स्कूल की साफ़ सफाई का भी बुरा हाल है|दिल्ली में जगह जगह जो मेट्रो पुल बन रहे है उससे जन सामान्य को सुविधा तो हो रही है लेकिन उससे लोगो परेशानी भी हुई है||
न्यू डेल्ही के रेलवे स्टेशन के पास गंदगी का साम्राज्य इस कद्र फे़ला है पुछो मत| उस ओर हमारे नेताओं का ध्यान इस लिय नहीं जाता क्योकि वहा से कोई विदेशी नेता या नेता नहीं आता| हा जब कभी किसी नेता को आना होता है तो साफ-सफाई कर चुना डाल दिया जाता है ओर सरकारी शोचायलो पर भी तभी ध्यान दिया जाता है| जनसामान्य के लिय कोई विशेस ध्यान नहीं दिया जाता उसे भी अब इन सब चीजो की आदत पड गयी है| अफसोस तो इस बात का है हम सब भी एक जुट होकर इसके लिय कोई शिकायत नहीं करते ना शिकायत करने वाले का साथ देते है|
| पुराने को मिटा कर नया बना देने से दिल्ली का सुधार नहीं होगा, जरूरत है पुराने में सुधार करके उसे सुन्दर और स्वच्छ बनाने की| नयी चीजो के बनने से गंदगी तो फेल रही है, साथ ही पुरानी चीजो का भी बुरा हाल हो रहा है| पता नहीं क्यों दिल्ली सरकार ये सोचती है कि पुलों ओर मेट्रो पुल के बनने से दिल्ली में चार चाँद लग जायेगे उसे ये दिखाई नहीं देता कि जब तक दिल्ली में कार और बाहर से आने वालो पर रोक नहीं होगी तब तक भीड़ पर काबू पाना और दिल्ली का सुधार मुश्किल है| दिल्ली में बाहर से आने पर रोक लगनी जरूरी है यदि इस ओर सरकार ध्यान नहीं देती है तो वो दिन दूर जब ये कहावत दिल्ली पर सच हो जायेगी चार दिन कि चांदनी फिर अँधेरी रात|
जितना ध्यान सरकार दिल्ली पर देती उसका चोथाई हिस्सा ध्यान अगर आस पास वाले गावो और इलाके पर दे उनको सुविधाए दे वहा भी पुलों और सडको, स्कूल और तकनीकी संस्थाओ का निमार्ण कराये तो भी शायद भीड़ पर काबू पाए|
मॉल से रुपया पैसा कमाया जा सकता है दिल्ली को सुधार नही जा सकता| मॉल बहुत बन गये इन पर रोक लगनी चाहिए और इनकी जगह पार्को और हरे-भरे पेड़ पोधे लगाने चाहिए जो पैसा मॉल पर सरकार खर्च कर रही है उसे सरकारी स्कूल और निगम स्कूल पर खर्च होना चाहिय और दिल्ली की पुरानी चीजो के सुधार में तभी दिल्ली का भला होगा वरना भगवन ही मालिक है|

Friday, July 17, 2009

एक शाम की बात
हर रोज की तरह उस शाम को चाय का कप ले कर अपनी बालकनी में खडी थी| इतने में एक सात-आठ साल का लड़का हाथ में इक भारी बोरी और इक में लकडी के कोयले लिए भाग कर आया और जगह बना कर सडक के किनारे बैठ गया,फिर उसने अपना स्थान साफ किया और तीन ईट रख कर फिर लोहे की जाली में कोयले डालकर उसे जलाया फिर एक गत्ते से उसे तेज हाथो से हवा करने लगा|
कोयले जब ठीक से जलने लगे तो उसने अपने बोरे से भुट्टे निकाल कर उस कोयले की आग में रखने शुरू कर दिए | अब उसने अपने हाथो की हवा और तेज कर दी,उस आग में तीन-चार भुट्टे रख दिए और लगातार हाथो से तेज हवा करता रहा|मैंने अपनी चाय खत्म की और सब्जी भी जो पहले से कटी थी उसे गैस पर रख दी फिर थोड़े से बर्तन धोकर फिर उसी स्थान पर आ गयी और उसी छोटे से लडके को देखने लगी जो अभी भी तेज हाथो से हवा किये जा रहा था और भुट्टे भुने जा रहा था|
धीरे-धीर उसकी मेहनत रंग लायी और उसके भुट्टे बिकने लगे,उसकी ख़ुशी चेहरे से कम हाथो से ज्यादा झलक रही थी, जो लगातार हवा किये जा रहे थे|मुझे पता लगा गया था की भुट्टे पॉँच-सात रूपये से ज्यादा का नहीं है| देखते- देखते उसके भुट्टे बिक गए, मेरी सब्जी भी बन गयी थी, मैंने गैस बंद कर दी फिर उसी स्थान पर आ गयी|
अपने सारे भुट्टे बिकने की ख़ुशी में वो सारा सामान समेट कर, अपनी बोतल से पानी पिया जो गर्म होने पर भी उसे शायद शीतल पेय लग रहा था सारा पानी पी कर झूमता हुआ अपने घर की और चला गया| दुबारा उसी जोश और ख़ुशी के साथ आने के लिए|
मुझे पता हैं वो बिना सुविधा के घर में चैन की नीद सोयेगा,वही दूसरी तरफ सभी सुविधा से सम्पन घरो में कुछ लोग सारी-सारी रात करवट बदल कर काटते है आखिर क्यों?????
धरती का दर्द समझो
हर रोज मुझे खोदा जाता है,
हर रोज मेरे बालो को नोचा जाता है,
मेरे हाथो को तोडा जाता है,
मेरे बच्चे मुझ से छीने जाते है|
हर तरह का जुल्म मुझ पर किया जाता है|
फिर भी मैं तुम सब को देती आई हु|
और दे रही हु |
मेरे छाती में अब और नहीं-
ईट,सरिये ,पत्थर डालो,
कुछ तो ठडक पहुचे छाती में
ऐसा कुछ कर डालो|
बादल बरसे ऊपर से तुम प्रेम-
के बीज डालो,
कुछ करे दया अम्बर और -
कुछ तुम कर डालो|
मेरा दर्द जब हद से ज्यादा,
बढ़ जायेगा फिर कुछ सम्भल नहीं पायेगा |

Monday, April 27, 2009

दोस्ती और प्यार

जिस तरह प्यार की कोई उम्र नहीं होती, उसी तरह दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती| हम सब के पास एक दिल होता हैं उस दिल में जज्बात होते हैं पर दोस्ती और प्यार में उस दोस्ती और प्यार की कद्र कोई कोई ही करता हैं| सच्चा प्यार और दोस्ती किसी-किसी को ही मिलती हैं|शादी से पहले मेरी बहुत सी सहेली थी किस्मत से सभी सहेली बहुत अच्छी थी आज भी उन सब की याद मेरे दिल में हैं| एम में मेरे साथ लडके भी थे,पर सब ठीक थे मैं सबसे बात करती थी| स्कूल और कॉलेज का समय सबसे अच्छा होता हैं, इस बात से आप भी सहमत होगे|{ शायद}
दोस्ती
आज दोस्ती के मायने बदल गए हैं कोई किसी का सच्चा दोस्त नहीं, आज कोई किसी से दोस्ती करता हैं तो उसका घर, उसके पास कार हैं या नहीं, उसके पास नौकर हैं,उसकी शक्ल- सूरत कैसी है, दिल के सिवा सब देख कर दोस्ती करते हैं| किसके दिल में कितना प्यार हैं दिल कितना खूबसूरत हैं ये कोई नहीं देखता| आज लड़का और लडकी की दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल जाती है और जल्दी टूट भी जाती है मैंने अपने आस पास देख कर और कुछ समझ कर येही अदाज लगाया हैं जहा तक मैं समझती हु ये सही हैं शायद कुछ की निगाह में सही न हो|
जब भी मैं किसी से दोस्ती करती हु तो उसको अपने बारे में सब सही बताने की कोशिश करती हु अपने घर कि ज्यादा तारीफ नहीं करती न ही अपने पति और बच्चो की, क्योकि मैं सोचती हु झूठ ज्यादा दिन तक छिप नहीं सकता और सच का पता चल जाता है इसलिय सच ही बोलना चाहिए|
शादी के बाद औरते दोस्ती को ज्यादा महत्त्व नहीं देती,वो पति और बच्चो की ही हो कर रह जाती है,हम में से बहुत औरते अपने पति की बातो को ही सच मानती चाहे वो बात झूठ ही क्यों न हो, आज के वक्त में पति को भगवान मान कर आख मुद कर उसकी हर बात को स्वीकार कर लेना शायद सही नहीं हैं लेकिन जो सही हैं वो मनाना ही चाहिए,चाहे वो दोस्त कहे या कोई और| दोस्ती की जरूरत शादी के बाद भी उतनी होती है जितने शादी के पहले, शादी के बाद की दोस्ती में रंग भरना हम औरतो के हाथ में हैं अगर हम दोस्ती को महत्त्व दे तो| अगर हम दोस्ते बनायेगे तो हम ज्यादा खुश रहेगे खुश रहेगे तो बीमारिया भी हमसे दूर रहेगी और हम काम कर पायेगे|
आज हम मोबाईल, टीवी और कंप्यूटर में फस के रह गये हैं इनसे भी दोस्ती करे लेकिन दोस्ती का महत्त्व को भी समझे और दोस्त बनाये|
प्यार
प्यार कभी भी कही भी किसी को भी हो सकता है प्यार सच में प्यार है तो वो कुछ भी नहीं देखता है| अगर देखता है तो सिर्फ दिल,दिल के सिवा प्यार कुछ भी नहीं देखता| आज प्यार के अर्थ बदल गये है लोग प्यार को महत्त्व नहीं देते प्यार को खेलने खाने की चीज समझते है| कुछ जो प्यार को सब समझते है वो मेरी तरह बुद्धू है|
प्यार दिल की वस्तु है दिमाग की नहीं,प्यार दिमाग से सोच कर नहीं किया जाता,प्यार तो दिल को दिल से हो जाता है फिर ना ये जाति देखता है ना धर्म ना रूप ना रंग| प्यार का भी कोई रूप,रंग नहीं है|आज कंप्यूटर,मोबाईल,टीवी की दुनिया ने भी प्यार को प्रभावित किया है| ऐसा में सोचती हु, आप क्या सोचते है?

Sunday, April 12, 2009

बिखरी-छितरी दिल्ली

न जाने दिल्ली का क्या होगा,हर तरफ भीड़ ही भीड़ दिखाई देती हैं,लोग एक दूसरे पर चढ़ने को बेताब रहते हैं| वैसे तो हर तरफ भीड़ का बुरा हाल हैं पर जो हाल मेरी आखो ने देखा हैं वो ही आप लोगो को बताऊगी|चिराग दिल्ली फ्लाई ओवर के पास भीड़ एक दूसरे पर चढ़ने को उत्सुक रहती हैं अगर थोडा ध्यान इधर उधर हुआ सब एक दूसरे पर चढ़ जायगे फिर कुतुबमीनार से ऊची चोटी तेयार हो जायेगी इसमें कोई शक नहीं|
एक कार वाला चाह रहा हैं एक और कार,एक घर वाला चाह रहा हैं एक बडा बागला| किसके इशारे पर बहु-मजिल इमारते पर इमारते बनती जा रही हैं maal per maal बन रहे है, स्वच्छ दिल्ली हरियाली दिल्ली के पेडो का बुरा हाल है, आने वाले समय में सबको पानी बिजली मिले इसकी कोई गारेन्टी नहीं हर पार्टी नेता अपनी छवि सवारने में लगा हैं देश की चिंता नहीं| शिक्षा और शिक्षक का बुरा हाल हैं सब जेब भर रहे हैं दिमाग का हाल खराब हैं सब बिना मकसद के भाग रहे हैं पता नहीं कहाँ जाना हैं|
दिल्ली का सुधार हो रहा हैं या फिर बंटाधार पता ही नहीं चल रहा लोगो को ऐसा लगता हैं| मौल के रूप में सुंदर सी मजिल तो बन जाती हैं पर आस-पास का हाल पूरा हो जाता हैं|आस-पास का हाल सुधार होने में कितना वक्त लगेगा पता नहीं,गरीब-मजदूर को थोड़े दिन का आसरा जरुर मिल जाता हैं उस मॉल के आस -पास जिसमे शायद वो कभी नहीं जा पायेगा|
हम सोच रहे हैं दिल्ली का सुधार हो रहा हैं पर मैं सोच रही हूँ दिल्ली का हाल बुरा हो रहा हैं|{अगर घर में पाच कमरे हो उनमे से एक कमरे को सारी सुविधए देने से पूरा घर सही नहीं हो जाता, मेरे कहने का अर्थ आप समझ गए होगे दिल्ली को पेरिस बना देने से पूरा भारत पेरिस नहीं हो जाता आधे से ज्यादा लोग यहाँ आज भी भूखे हैं| गाँव का खास कर पिछडे इलाके का बुरा हाल हैं| ये बात सारी पार्टिया और नेता जानते हैं जिन्हें चुनाव के समय सब याद आता लेकिन बाद में वही ढाक के तीन पात, सब पन्नो में रह जाता हैं|
हर तरफ से लोग दिल्ली में आ कर बस रहे हैं क्यों? क्या कभी आपने सोचा है दो वक्त की रोटी के लिए, अपने घर छोड़ कर लोग यहाँ आ रहे हैं पार्टियाँ और नेता जानता की सोचते हैं तो गावं का सुधार करे और पिछडे इलाके को सुविधए दे{बिजली और पानी} ताकि गावं का आदमी दिल्ली की और न भागे|
परिवर्तन का अर्थ पुराना को छोड़ना नहीं बल्कि नये के साथ मिल के पुराना को सुधारना हैं, जो शायद दिल्ली में नहीं हो रहा इसिलये यहाँ सुधार तो हो रहा है पर कुछ यहाँ खो भी रहा हैं| हरियाली नाम मात्र की रह गयी हैं,वी. आई. पी. के पास सब है हरियाली और रास्ता भी|
जब कभी दिल्ली में पार्को में जाओ{एक आध को छोड़कर} छोटे-छोटे पेड़ ही ज्यादा नजर आते हैं छायादार पेड़ नहीं| यहाँ एक बात कहना चाहती हु हमारे घर के पास एक बहुत बडा पार्क था जो है भी,1999 में जब हम वहा जाते थे तब वहाँ तमाम नीम के हरे-हरे पेड़ और हरियाली थी और आज वहा सब सुखा-सुखा नज़र आता है वेसे तो सारी दिल्ली सुख रही है जो इलाके हरे-भरे थे वहां भी इमारते पे इमारते बनती जा रही हरियाली खत्म हो रही है पानी का बुरा हाल है| जितने भी माल है उनमे झरने आपको चलते मिल जायेगे,चाहे लोगो नहाने और पीने को पानी न हो|
यहाँ-वहां जहा-तहां मत पूछो, कहाँ-कहाँ हैं पुलों की बहार
दिल्ली हो रही बेकार| दिल्ली हो रही बेकार|
इधर भी खुद रहा उधर भी खुद रहा,
न इधर का पूरा हुआ,न उधर का हुआ|
इमारत बन जाने से,maal per maal बन जाने से
फायद किसको हुआ जेब किसकी भरी,
तुम जानते हो हम भी जानते हैं
पर चुप हैं सब ,कुछ कब मानते हैं|
काम पर जाना और आना
टीवी देखना और सो जाना
अपनी उलझनों में खो जाना
अपने सुख में खो जाना
क्या जिंदगी इसी को कहते हैं|
दिल्ली के लिए दिल से सोचे और हम सब मिल कर कुछ करे तभी दिल्ली का रूप सवरेगा नहीं तो चार दिन के चादनी फिर अधेरी रात वाली बात दिल्ली पर सच हो जायेगी|

Tuesday, March 24, 2009

दर्द

जब दर्द हद से बढ़ जाता हैं,
तब अश्को में ढल जाता हैं|
जो दिल में छिपा रह जाता हैं,
वो रोग में बदल जाता हैं|
दर्द को अश्को में बह जाने दो,
या पन्नो में बिछ जाने दो|
या पास हैं कोई साथी प्यारा,
उस संग घुल-मिल जाने दो|

Thursday, March 19, 2009

सिसकती कश्मीर

रोती है कश्मीर,दिल उसका उदास है|
कल तक सब ठीक था आज बदहाल हैं|
नेता आये, वादे आये,बात बनाये चले गए|
कश्मीर पर राजनीति,उल्टी-सीधी पक रही,
घर बेठे तमाश देखे हम,कश्मीर धूं-धूं जल रही|
मैं भी उन लोगो में शामिल हु जो पेपर और मैगजीन में कश्मीर के बारे में पढ़ कर दो मिनट उदास हो कर चुप हो जाते हैं,या चार लोगो में बाते करके अपनी भड़ास निकलते हैं| क्यों हम और आप कश्मीर को भूलते जा रहे हैं कश्मीर की खूबसूरत वादियों को क्यों भूल रहे हैं क्या वहा के फलो,जडी-बूटियों के फायदे नुकसान के बारे में हम-तुम नहीं जानते| कश्मीर की कढाई तो देश-विदेश में मशहूर हैं उन्नत किस्म की केसर भी इन्ही वादियों और मिट्टी का खूबसूरत तोहफा हैं जो खुदा ने हमे दिया हैं|
आज जम्मू और कश्मीर की जो स्थिति हैं उस पर हम-सब को कुछ सोचने की नहीं करने की जरूरत हैं लेकिन शुरुआत कौन करे हम में से कोई हिन्दू है कोई मुसलमान है कोई सिख,ईसाई | हिन्दुस्तानी या भारतीय नहीं अगर होते तो समस्या का समाधान हो जाता| हम सब ने एक स्वर में कभी कश्मीर के लिय आवाज नहीं उठाई|
कभी-कभी कश्मीर से जान बचाकर कर आये लोग जो दिल्ही और जगह-जगह रह रहे है उनसे बात-चित करके एक दो बार वहाँ के हालत पता लगे एक बार दो युवा से मेरी बात-चित हुई उन दोनों से बात करके मेरा दिल उदास हो गया ज्यादा तो में कर नहीं सकती थी 100 रु देकर मैं ने अपना दिल हल्का कर लिया लेकिन बाद में भी सोचने के सिवा मैं क्या कर सकती थी| जब मैं अपनी वर्ग की महिलायों से बात करती हु तो सब मुझे पागल समझते हैं फिर मैं सोचती हु कोई बात नहीं इनकी नज़र में पागल ही सही|
मुझे याद है जब में आठ या नौ साल की थी तब मेरे बाउजी कश्मीर के मीठे सेब और अखरोट लाये थे| एक बार कश्मीरी कपडे वाला आया उससे हमने कश्मीरी शाले और शलवार कुरता का कपडा लिया,मुझे याद है उस कपडे वाले का दर्द भरा चहेरा उसकी गरीबी जो उस तपती दोपहर में उसे कपडे बचेने के लिए और घर वालो को जिंदा रखने के लिए मजबूर किये हुवे थी| इससे ज्यादा और क्या कहु|
मैं सिर्फ इतना चाहती हु जम्मू और कश्मीर हमारे देश का अभिन्न हिस्सा हैं उसकी समस्या का समाधान जरूरी है इस बारे में हम सब को भारतीय बन कर सोचना चाहिए, हिन्दू मुस्लिम बन कर नहीं| इन्सान के खून का रंग लाल है और स्नेह{प्यार}का रंग भी लाल| सोचो तो दर्द का अहसास भी एक तो फिर हम अलग-अलग कैसे हुवे दिल और दिमाग से सोचो हम सब एक हैं|

Wednesday, March 18, 2009

तेरी मेरी कहानी

ज़ब भी मैं सुबह उठती हु सोचती हु ये करुगी वो करुगी लेकिन क्या मैं वो सब पूरा कर पाती हु नहीं क्यों?क्योकि मैं अपने इरादे की पक्की नहीं हु,लेकिन मैं अपना काम खुद पूरा करना चाहती हु पति की मदद के बिना कबतक पति की मदद लेते रहेगे और डाट सुनते रहेगे| कभी-कभी पति की डाट बहुत बुरी लगती है और उनकी किसी प्रकार की मदद भी जहर लगती है मेरे ये शब्द शायद उन्हें बुरे लगे लेकिन जो लगता है वोही तो लिखुगी| मैं ही नहीं बहुत सी औरते ऐसा ही सोचती है मुख से कहती नहीं हम औरते की नज़र में पति ही सब कुछ है पति की नज़र में हम क्या है{मेरे पति मुझे आज़ादी देते है और कहते है तुम जो मर्जी आये करो,ऐसा कुछ मत करना जिससे बच्चे और मुझे परेशानी हो मैं उनसे कहती हु तुम्हारी आज़ादी का मुझे क्या फायदा,एक तो मुझे इंग्लिश अच्छी आती नहीं,बाहरी दुनिया की इतनी समझ नहीं,पति ने आज़ादी दे कर अपना पल्ला छुड़वा लिया,घर और बच्चे देखना उसके बाद काम और ससुराल की खिच-खिच पिच-पिच इन के बीच अपने लिए कुछ करना एक शादी शुदा औरते के लिए मुश्किल होता है जो कान आख बंद कर ले वो ही कर सकती है या कुछ हमारी तरह जो करना चाहती पर डरती है किससे पति से,समाज या सास से या खुद से}|
मैं अपने इरादे की पक्की होना चाहती हु हो सकती हु,मुझे पता है अगर मैं अपना बारे में एक इन्सान की तरह सोंचू तो मेरी समस्या हल हो जायेगी लेकिन मैं एक नारी बन कर सोचुगी तो समस्या शायद हल ना हो| हम नारी ऐसा क्यों नहीं सोचती| मेरे साथ साथ आप सब नारी भी इन्सान बनकर अपने बारे में सोचो तो शायद हम सब नारी ज्यादा खुश और तरक्की कर पाए अपनी और समाज की| ऐसा मुझे लगता है शायद सही हो शायद ना भी लेकिन एक बार ऐसा सोचने और करने में क्या बुराई है|
सुबह आखं खुलने से लेकर रात सोने तक हम- सब औरते कितना अपने लिए सोचते है और कितना अपने परिवार के लिए ये हम सब औरते अच्छी तरह जानती है| परिवार के लिए सोचना ठीक है लेकिन अपने लिए भी सोचना चाहिय हर वक्त पति, बच्चे और ससुराल इसके सिवा कुछ नहीं क्यों? जब कभी में इस बारे अपनी सहेलियों से पूछती हु तो सबका एक ज़वाब होता है,यार अब क्या अपने बारे में सोचे, इतना वक्त तो आटा-रोटी में गुजर गया,बाकी का भी गुजर जायेगा|कभी-कभी में भी ऐसा सोचती हू,लेकिन क्यों हम-सब ऐसा सोचते हैं|
जीवन बार-बार नहीं मिलता,इस छोटे से जीवन में ही हमे औरो के लिए जीते हुए,करते हुए,अपने लिए भी कुछ करना होगा|
शायद कमजोरी हम औरतो के अंदर है जिसने जेसा कहा मान लिया अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहींकिया पढ़-लिख कर भी दूसरों पर आश्रति होना अपनी खूबी समझते हैं हम औरते,{कुछ एक आध को छोड़ कर }कुछ एक आध औरते है जो अपने निर्णय खुद लेती है, गलतियाँ भी करती है{लेकिन इसांन गलती करके ही सीखता है ये हम सब जानते है}खूब सोचती भी है कभी-कभी बहुत रोती भी है ज़ब कोई सामान ठीक नहीं आता और पति कुछ नहीं कहते,चुप रहते है, क्योकि ऐसे पति जानते है आज गलती की, कल जरुर सीख जायेगी| {मेरी पति ऐसे ही है मेरे पति जेसे और भी पति होगे जो अपनी पत्नियों को सीखाने में रूचि रखते होगे|
हमारे अंदर ही ख़ुशी है,हमारे अंदर ही दर्द, हमारे पास ही ताकत,जरूरत है उसे पहचानने की, कोशिश करे तो सब हो जायेगा| किसी एक को आगे आने ज़रूरत है| थोडा मै कोशिश कर रही हू थोडा आप करो| हम सब औरते अपने बारे में भी सोचे और,घर परिवार के बारे में भी,अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए अपने लिए भी सोचे आप क्या चाहती है?
{ कुछ गलत लिखा हो तो माफी चाहती हू}

Saturday, March 7, 2009

आप सब की आलोचना,प्रशसा के लिय धन्यवाद| उम्मीद है आगे भी आप सब का सहयोग प्राप्त होता रहेगा| अपनी तरफ से मैं अच्छे से अच्छा लिखने की कोशिश करूंगी| आप सब लोगो ने मेरासवेरा के लिय जो समय निकला उसके लिय धन्यवाद|

Thursday, March 5, 2009

पाठको से निवेदन

मेरी रचनाओं में अभी गलतियाँ हो रही है जिसके लिए में माफी चाहती हूँ| आप लोगो के सहयोग से जल्दी ही अपनी गलतियाँ सुधार लूगी कृपया थोडा समय दीजिए|

फुलझडी

१. एक कुत्ता दुसरे कुत्ता का दर्द समझ जाता है,
पास बैठ सहलाता,दुम हिलाता है|
एक आदमी दुसरे आदमी का दर्द समझ,
नहीं पाता है,
पास से देख कर निकल जाता है सिर्फ,
बात बनाता है|
२. पराये फिर भी समझ जाते हैं,
अपने सिर्फ दर्द दे जाते है|
परायो को छोड़ना पड़ता हैं,
अपनों को भोगना पड़ता हैं |
३.प्यार चुंबन या मिलन नहीं,
प्यार कोई चुंभन नहीं,
प्यार एक कोरा कागज़ हैं,
जिसे प्यार ही समझ सकता हैं,
जिसमे कुछ लिखा नहीं लेकिन-
सब कुछ लिखा हैं जिसे प्यार ही पढ़ सकता हैं|

Monday, March 2, 2009

एक तमन्ना


एक तमन्ना उड़ मैं जाऊ,
नील गगन को छु के आऊ|
एक इच्छा ऐसी मन में,
छिपू किसी को नज़र न आऊ|
एक ख्वाहिश उठी है मन में,
ऐसी बिखरू सिमट न पाऊ|
एक तमन्ना ऐसी मन में,
ऐसी उलझू,उलझती जाऊ ,
किसी से सुलझ न पाऊ|
एक इच्छा जागी है मन में,
नये साचे में ढल के ऑऊ,
सबके मुख पे हंसी बन छाऊ,
आखिरी तमन्ना है इस मन की-
कली,झरना,बादल,तितली,
या फिर पर्वत बन जाऊ|
कली बन बाग़ महकाऊँ,
झरना बन बहती जाऊँ,
पर्वत बन स्थर हो जाऊँ|
हर किसी के काम मैं आऊँ|

savera

Tuesday, February 3, 2009

आया की मदद

स्कूल के दिनों की बात है।स्कूल में प्रार्थना का समय था। सभी लाइन में प्रार्थना के लिए खड़े थे। प्रार्थना खत्म होने के बाद जैसे ही मैंने आखे खोली मैंने देखा मेरी स्कूल की आया की चप्पल टूट गई थी। वो उसे जोड़ने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बार-बार उसकी कोशिश नाकाम हो रही थी, मैं लगातार उसे देख रही थी, मुझसे रहा नही गया| मैंने क्लास टीचर से पूछे बिना लाइन से हट कर अपनी आया की चप्पल सेफ्टी पिन से जोड़ दी| उसने प्यार से मेरी तरफ देखा और मुस्कुराई मैं बहूत खुश हुइ, सामने मेरी क्लास टीचर मुझे देख रही थी |
वो भी मुझे देख कर मुस्कुराई मैं क्लास की तरफ चल दी| क्लास टीचर ने कुछ नही कहा, मेरी सहेलियों को शायद ठीक नही लगा| अपनी आया की मदद करके मेरे दिल को खुशी हुई और क्या चाहिए|


फुलझड़ी

उदास
बहुत उदास हूँ मैं ,
ना जाने किसके साथ हूँ मैं
किसे खोजती हूँ ,
किसकी तलाश हूँ मैं|

दर्द
मर्द को भी दर्द होता है
वो साथ में नही, अकेले में रोता है |

सोना
सोना के बाप ने सोना को
सोने में लाद दिया ,
फिर भी ससुराल वालो ने
सोना को जिंदा जला दिया
सदा के लिए सुला दिया।

Saturday, January 31, 2009

पुनर्जन्म

एक महिला अपने कुत्ता को इस तरह बुला रही थी
कम ओंन जोनी
कम ओंन जोनी
सिट इन कार ,
सिट इन कार डार्लिंग
माय बेबी, स्वीट डार्लिंग

पास उसे एक बच्ची
निहार रही थी
सोच रही थी
मैं भी होती कुत्ता या कुत्तिया
मुझे भी मिलता प्यार ,सुबह-शाम मालिको की पड़ती फटकार
खाने को मिलती दुध - रोटी , सैर करने को कार और मीठा प्यार

काश: दुबारा जनम हो तो कुत्ता कुतिया ही बनाना
इन जैसे अमीरों के घर, मेरा घर बसाना

Monday, January 26, 2009

सास-बहू का मायाजाल दर्शक बेहाल

सास-बहू के सीरियल कब हॊंगे खतम।
दॆख-दॆख दर्शक वर्ग आ गया है तंग॥
दुख-दर्द गमॊं मॆं भी मेक-अप मॆं नजर आती हैं।
खुले कॆश, रेशमी साड़ी पहन किचन मॆं खाना बनाती हैं॥
कहीं-कहीं तॊ पात्र मर कर भी जिन्दा हॊ जाते हैं।
प्लास्टिक सर्जरी कॆ बाद पूरे ही बदल जाते हैं॥
सीरियलॊं मॆं ईर्ष्या, शक, षड्यंत्र भरॆ नजर आते हैं।
भॊली-भाली जनता कॊ तड़क-भड़क सॆ रिझातॆ हैं।

बच्चे जवान हॊ जातॆ हैं, पॉप-मॉम वैसे ही नजर आतॆ हैं।
दादा-दादी, नाना-नानी की झुर्रियां कहां छिपातॆ हैं॥
अचानक सौतन का बॆटा बीच मॆं आ जाता है।
सीरियल कॊ लंबा करने का उन्हे हक मिल जाता है॥
हर औरत कॊ सीरियल मॆं मॉडर्न दिखाया जाता है।
हर आदमी का अतिरिक्त संबंध दिखाया जाता है॥

न जाने जनता इन सीरियलॊं कॊ कैसे पचाती है।
न चाहतॆ हुए भी दॆखती, सॊचती, पछताती है॥
न चाहतॆ हुए भी उन्गली उन चैनलॊं पर रुक जाती है।
चिकनी-चुप़ड़ी, अधनंगी तस्वीर जिसमॆं नजर आती है॥
जाने अपने सीरियल मॆं क्या दिखाना चाहते हैं।
शुरुआत तॊ अच्छी करते हैं जल्द ही मगर खॊ जातॆ हैं॥

अपनी अपनी मजबूरियाँ

एक युवती।
तंग ब्लाउज़॥
डीप गला।
छॊटी स्कर्ट॥
तन कम ढका।
ज्यादा उघढ़ा॥
कटे बाल।
हॊंठ लाल॥
कन्धे पे बैग।
हाथ में कुत्ता॥
मॊबाइल पर।
बात किये जा रही थी॥
सड़क पार जा रही थी॥।

दूसरी युवती।
फ़टा ब्लाउज़।
मैली घघरिया।
बिखर आंचल॥
कम उमरिया।
उलझॆ बाल।
चिपकॆ गाल॥
सूखे हॊंठ।
नंगे पांव।
नीची नजर।
शरमा रही थी।
सड़क पार जा रही थी॥


देख मॉडल की तरुणाई।
क, ख, ग ने ली अंगड़ाई
और क ने सीटी बजाई।
मॉडल ने सैंडल उठाई।
कुत्ते जॉनी कॊ किया इशारा।
डर कर क, ख, ग ने किया किनारा॥
मॉडल पैसे वाली थी।
साथ उसके गाड़ी थी।
बैठ गाड़ी में निकल ली।
अब उस गरीब की बारी थी।
जॊ अबला बॆचारी थी।
न उसकॆ पास गाड़ी थी।
न कुत्ते की चौकीदारी थी।
क ने सीटी, ख ने कॊहनी मारी।
ग ने आंचल पकड़ा।
ये सब दॆख मेरा दिल धड़का।
साथ नहीं था मेरे कॊई लड़का।
मॆं मध्यमवर्गीय नारी थी
साथ नहीं मेरे भी गाड़ी थी।
मॆं भी एक बेचारी थी।
इज़्ज़त मुझे भी प्यारी थी।
स्वतंत्र भारत की परतंत्र नारी थी।
तॆज-तॆज कदमॊं से घर का रुख किया।
न जाने उस बॆचारी का
क, ख, ग ने क्या किया॥
क, ख, ग ने क्या किया॥

Sunday, January 25, 2009

हरा दर्द

निठारी कांड को आप सब भूल गए क्या
नही ?
तो फिर दुबारा ऐसा हो इस के लिए क्या किया आप ने हम ने
मेंने दर्द को तस्वीर में ढाला आंसू से किया रंग, दर्द आज भी है संग