Monday, January 26, 2009

अपनी अपनी मजबूरियाँ

एक युवती।
तंग ब्लाउज़॥
डीप गला।
छॊटी स्कर्ट॥
तन कम ढका।
ज्यादा उघढ़ा॥
कटे बाल।
हॊंठ लाल॥
कन्धे पे बैग।
हाथ में कुत्ता॥
मॊबाइल पर।
बात किये जा रही थी॥
सड़क पार जा रही थी॥।

दूसरी युवती।
फ़टा ब्लाउज़।
मैली घघरिया।
बिखर आंचल॥
कम उमरिया।
उलझॆ बाल।
चिपकॆ गाल॥
सूखे हॊंठ।
नंगे पांव।
नीची नजर।
शरमा रही थी।
सड़क पार जा रही थी॥


देख मॉडल की तरुणाई।
क, ख, ग ने ली अंगड़ाई
और क ने सीटी बजाई।
मॉडल ने सैंडल उठाई।
कुत्ते जॉनी कॊ किया इशारा।
डर कर क, ख, ग ने किया किनारा॥
मॉडल पैसे वाली थी।
साथ उसके गाड़ी थी।
बैठ गाड़ी में निकल ली।
अब उस गरीब की बारी थी।
जॊ अबला बॆचारी थी।
न उसकॆ पास गाड़ी थी।
न कुत्ते की चौकीदारी थी।
क ने सीटी, ख ने कॊहनी मारी।
ग ने आंचल पकड़ा।
ये सब दॆख मेरा दिल धड़का।
साथ नहीं था मेरे कॊई लड़का।
मॆं मध्यमवर्गीय नारी थी
साथ नहीं मेरे भी गाड़ी थी।
मॆं भी एक बेचारी थी।
इज़्ज़त मुझे भी प्यारी थी।
स्वतंत्र भारत की परतंत्र नारी थी।
तॆज-तॆज कदमॊं से घर का रुख किया।
न जाने उस बॆचारी का
क, ख, ग ने क्या किया॥
क, ख, ग ने क्या किया॥

1 comment:

  1. "Apni Apni Majbooriyan " kavita bahut achhi lagi , Ummed hai ki aagey bhi aisi kavitayen padne ko milengi.......

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