जिस तरह प्यार की कोई उम्र नहीं होती, उसी तरह दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती| हम सब के पास एक दिल होता हैं उस दिल में जज्बात होते हैं पर दोस्ती और प्यार में उस दोस्ती और प्यार की कद्र कोई कोई ही करता हैं| सच्चा प्यार और दोस्ती किसी-किसी को ही मिलती हैं|शादी से पहले मेरी बहुत सी सहेली थी किस्मत से सभी सहेली बहुत अच्छी थी आज भी उन सब की याद मेरे दिल में हैं| एम में मेरे साथ लडके भी थे,पर सब ठीक थे मैं सबसे बात करती थी| स्कूल और कॉलेज का समय सबसे अच्छा होता हैं, इस बात से आप भी सहमत होगे|{ शायद}
दोस्ती
आज दोस्ती के मायने बदल गए हैं कोई किसी का सच्चा दोस्त नहीं, आज कोई किसी से दोस्ती करता हैं तो उसका घर, उसके पास कार हैं या नहीं, उसके पास नौकर हैं,उसकी शक्ल- सूरत कैसी है, दिल के सिवा सब देख कर दोस्ती करते हैं| किसके दिल में कितना प्यार हैं दिल कितना खूबसूरत हैं ये कोई नहीं देखता| आज लड़का और लडकी की दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल जाती है और जल्दी टूट भी जाती है मैंने अपने आस पास देख कर और कुछ समझ कर येही अदाज लगाया हैं जहा तक मैं समझती हु ये सही हैं शायद कुछ की निगाह में सही न हो|
जब भी मैं किसी से दोस्ती करती हु तो उसको अपने बारे में सब सही बताने की कोशिश करती हु अपने घर कि ज्यादा तारीफ नहीं करती न ही अपने पति और बच्चो की, क्योकि मैं सोचती हु झूठ ज्यादा दिन तक छिप नहीं सकता और सच का पता चल जाता है इसलिय सच ही बोलना चाहिए|
शादी के बाद औरते दोस्ती को ज्यादा महत्त्व नहीं देती,वो पति और बच्चो की ही हो कर रह जाती है,हम में से बहुत औरते अपने पति की बातो को ही सच मानती चाहे वो बात झूठ ही क्यों न हो, आज के वक्त में पति को भगवान मान कर आख मुद कर उसकी हर बात को स्वीकार कर लेना शायद सही नहीं हैं लेकिन जो सही हैं वो मनाना ही चाहिए,चाहे वो दोस्त कहे या कोई और| दोस्ती की जरूरत शादी के बाद भी उतनी होती है जितने शादी के पहले, शादी के बाद की दोस्ती में रंग भरना हम औरतो के हाथ में हैं अगर हम दोस्ती को महत्त्व दे तो| अगर हम दोस्ते बनायेगे तो हम ज्यादा खुश रहेगे खुश रहेगे तो बीमारिया भी हमसे दूर रहेगी और हम काम कर पायेगे|
आज हम मोबाईल, टीवी और कंप्यूटर में फस के रह गये हैं इनसे भी दोस्ती करे लेकिन दोस्ती का महत्त्व को भी समझे और दोस्त बनाये|
प्यार
प्यार कभी भी कही भी किसी को भी हो सकता है प्यार सच में प्यार है तो वो कुछ भी नहीं देखता है| अगर देखता है तो सिर्फ दिल,दिल के सिवा प्यार कुछ भी नहीं देखता| आज प्यार के अर्थ बदल गये है लोग प्यार को महत्त्व नहीं देते प्यार को खेलने खाने की चीज समझते है| कुछ जो प्यार को सब समझते है वो मेरी तरह बुद्धू है|
प्यार दिल की वस्तु है दिमाग की नहीं,प्यार दिमाग से सोच कर नहीं किया जाता,प्यार तो दिल को दिल से हो जाता है फिर ना ये जाति देखता है ना धर्म ना रूप ना रंग| प्यार का भी कोई रूप,रंग नहीं है|आज कंप्यूटर,मोबाईल,टीवी की दुनिया ने भी प्यार को प्रभावित किया है| ऐसा में सोचती हु, आप क्या सोचते है?
Monday, April 27, 2009
Sunday, April 12, 2009
बिखरी-छितरी दिल्ली
न जाने दिल्ली का क्या होगा,हर तरफ भीड़ ही भीड़ दिखाई देती हैं,लोग एक दूसरे पर चढ़ने को बेताब रहते हैं| वैसे तो हर तरफ भीड़ का बुरा हाल हैं पर जो हाल मेरी आखो ने देखा हैं वो ही आप लोगो को बताऊगी|चिराग दिल्ली फ्लाई ओवर के पास भीड़ एक दूसरे पर चढ़ने को उत्सुक रहती हैं अगर थोडा ध्यान इधर उधर हुआ सब एक दूसरे पर चढ़ जायगे फिर कुतुबमीनार से ऊची चोटी तेयार हो जायेगी इसमें कोई शक नहीं|
एक कार वाला चाह रहा हैं एक और कार,एक घर वाला चाह रहा हैं एक बडा बागला| किसके इशारे पर बहु-मजिल इमारते पर इमारते बनती जा रही हैं maal per maal बन रहे है, स्वच्छ दिल्ली हरियाली दिल्ली के पेडो का बुरा हाल है, आने वाले समय में सबको पानी बिजली मिले इसकी कोई गारेन्टी नहीं हर पार्टी नेता अपनी छवि सवारने में लगा हैं देश की चिंता नहीं| शिक्षा और शिक्षक का बुरा हाल हैं सब जेब भर रहे हैं दिमाग का हाल खराब हैं सब बिना मकसद के भाग रहे हैं पता नहीं कहाँ जाना हैं|
दिल्ली का सुधार हो रहा हैं या फिर बंटाधार पता ही नहीं चल रहा लोगो को ऐसा लगता हैं| मौल के रूप में सुंदर सी मजिल तो बन जाती हैं पर आस-पास का हाल पूरा हो जाता हैं|आस-पास का हाल सुधार होने में कितना वक्त लगेगा पता नहीं,गरीब-मजदूर को थोड़े दिन का आसरा जरुर मिल जाता हैं उस मॉल के आस -पास जिसमे शायद वो कभी नहीं जा पायेगा|
हम सोच रहे हैं दिल्ली का सुधार हो रहा हैं पर मैं सोच रही हूँ दिल्ली का हाल बुरा हो रहा हैं|{अगर घर में पाच कमरे हो उनमे से एक कमरे को सारी सुविधए देने से पूरा घर सही नहीं हो जाता, मेरे कहने का अर्थ आप समझ गए होगे दिल्ली को पेरिस बना देने से पूरा भारत पेरिस नहीं हो जाता आधे से ज्यादा लोग यहाँ आज भी भूखे हैं| गाँव का खास कर पिछडे इलाके का बुरा हाल हैं| ये बात सारी पार्टिया और नेता जानते हैं जिन्हें चुनाव के समय सब याद आता लेकिन बाद में वही ढाक के तीन पात, सब पन्नो में रह जाता हैं|
हर तरफ से लोग दिल्ली में आ कर बस रहे हैं क्यों? क्या कभी आपने सोचा है दो वक्त की रोटी के लिए, अपने घर छोड़ कर लोग यहाँ आ रहे हैं पार्टियाँ और नेता जानता की सोचते हैं तो गावं का सुधार करे और पिछडे इलाके को सुविधए दे{बिजली और पानी} ताकि गावं का आदमी दिल्ली की और न भागे|
परिवर्तन का अर्थ पुराना को छोड़ना नहीं बल्कि नये के साथ मिल के पुराना को सुधारना हैं, जो शायद दिल्ली में नहीं हो रहा इसिलये यहाँ सुधार तो हो रहा है पर कुछ यहाँ खो भी रहा हैं| हरियाली नाम मात्र की रह गयी हैं,वी. आई. पी. के पास सब है हरियाली और रास्ता भी|
जब कभी दिल्ली में पार्को में जाओ{एक आध को छोड़कर} छोटे-छोटे पेड़ ही ज्यादा नजर आते हैं छायादार पेड़ नहीं| यहाँ एक बात कहना चाहती हु हमारे घर के पास एक बहुत बडा पार्क था जो है भी,1999 में जब हम वहा जाते थे तब वहाँ तमाम नीम के हरे-हरे पेड़ और हरियाली थी और आज वहा सब सुखा-सुखा नज़र आता है वेसे तो सारी दिल्ली सुख रही है जो इलाके हरे-भरे थे वहां भी इमारते पे इमारते बनती जा रही हरियाली खत्म हो रही है पानी का बुरा हाल है| जितने भी माल है उनमे झरने आपको चलते मिल जायेगे,चाहे लोगो नहाने और पीने को पानी न हो|
यहाँ-वहां जहा-तहां मत पूछो, कहाँ-कहाँ हैं पुलों की बहार
दिल्ली हो रही बेकार| दिल्ली हो रही बेकार|
इधर भी खुद रहा उधर भी खुद रहा,
न इधर का पूरा हुआ,न उधर का हुआ|
इमारत बन जाने से,maal per maal बन जाने से
फायद किसको हुआ जेब किसकी भरी,
तुम जानते हो हम भी जानते हैं
पर चुप हैं सब ,कुछ कब मानते हैं|
काम पर जाना और आना
टीवी देखना और सो जाना
अपनी उलझनों में खो जाना
अपने सुख में खो जाना
क्या जिंदगी इसी को कहते हैं|
दिल्ली के लिए दिल से सोचे और हम सब मिल कर कुछ करे तभी दिल्ली का रूप सवरेगा नहीं तो चार दिन के चादनी फिर अधेरी रात वाली बात दिल्ली पर सच हो जायेगी|
एक कार वाला चाह रहा हैं एक और कार,एक घर वाला चाह रहा हैं एक बडा बागला| किसके इशारे पर बहु-मजिल इमारते पर इमारते बनती जा रही हैं maal per maal बन रहे है, स्वच्छ दिल्ली हरियाली दिल्ली के पेडो का बुरा हाल है, आने वाले समय में सबको पानी बिजली मिले इसकी कोई गारेन्टी नहीं हर पार्टी नेता अपनी छवि सवारने में लगा हैं देश की चिंता नहीं| शिक्षा और शिक्षक का बुरा हाल हैं सब जेब भर रहे हैं दिमाग का हाल खराब हैं सब बिना मकसद के भाग रहे हैं पता नहीं कहाँ जाना हैं|
दिल्ली का सुधार हो रहा हैं या फिर बंटाधार पता ही नहीं चल रहा लोगो को ऐसा लगता हैं| मौल के रूप में सुंदर सी मजिल तो बन जाती हैं पर आस-पास का हाल पूरा हो जाता हैं|आस-पास का हाल सुधार होने में कितना वक्त लगेगा पता नहीं,गरीब-मजदूर को थोड़े दिन का आसरा जरुर मिल जाता हैं उस मॉल के आस -पास जिसमे शायद वो कभी नहीं जा पायेगा|
हम सोच रहे हैं दिल्ली का सुधार हो रहा हैं पर मैं सोच रही हूँ दिल्ली का हाल बुरा हो रहा हैं|{अगर घर में पाच कमरे हो उनमे से एक कमरे को सारी सुविधए देने से पूरा घर सही नहीं हो जाता, मेरे कहने का अर्थ आप समझ गए होगे दिल्ली को पेरिस बना देने से पूरा भारत पेरिस नहीं हो जाता आधे से ज्यादा लोग यहाँ आज भी भूखे हैं| गाँव का खास कर पिछडे इलाके का बुरा हाल हैं| ये बात सारी पार्टिया और नेता जानते हैं जिन्हें चुनाव के समय सब याद आता लेकिन बाद में वही ढाक के तीन पात, सब पन्नो में रह जाता हैं|
हर तरफ से लोग दिल्ली में आ कर बस रहे हैं क्यों? क्या कभी आपने सोचा है दो वक्त की रोटी के लिए, अपने घर छोड़ कर लोग यहाँ आ रहे हैं पार्टियाँ और नेता जानता की सोचते हैं तो गावं का सुधार करे और पिछडे इलाके को सुविधए दे{बिजली और पानी} ताकि गावं का आदमी दिल्ली की और न भागे|
परिवर्तन का अर्थ पुराना को छोड़ना नहीं बल्कि नये के साथ मिल के पुराना को सुधारना हैं, जो शायद दिल्ली में नहीं हो रहा इसिलये यहाँ सुधार तो हो रहा है पर कुछ यहाँ खो भी रहा हैं| हरियाली नाम मात्र की रह गयी हैं,वी. आई. पी. के पास सब है हरियाली और रास्ता भी|
जब कभी दिल्ली में पार्को में जाओ{एक आध को छोड़कर} छोटे-छोटे पेड़ ही ज्यादा नजर आते हैं छायादार पेड़ नहीं| यहाँ एक बात कहना चाहती हु हमारे घर के पास एक बहुत बडा पार्क था जो है भी,1999 में जब हम वहा जाते थे तब वहाँ तमाम नीम के हरे-हरे पेड़ और हरियाली थी और आज वहा सब सुखा-सुखा नज़र आता है वेसे तो सारी दिल्ली सुख रही है जो इलाके हरे-भरे थे वहां भी इमारते पे इमारते बनती जा रही हरियाली खत्म हो रही है पानी का बुरा हाल है| जितने भी माल है उनमे झरने आपको चलते मिल जायेगे,चाहे लोगो नहाने और पीने को पानी न हो|
यहाँ-वहां जहा-तहां मत पूछो, कहाँ-कहाँ हैं पुलों की बहार
दिल्ली हो रही बेकार| दिल्ली हो रही बेकार|
इधर भी खुद रहा उधर भी खुद रहा,
न इधर का पूरा हुआ,न उधर का हुआ|
इमारत बन जाने से,maal per maal बन जाने से
फायद किसको हुआ जेब किसकी भरी,
तुम जानते हो हम भी जानते हैं
पर चुप हैं सब ,कुछ कब मानते हैं|
काम पर जाना और आना
टीवी देखना और सो जाना
अपनी उलझनों में खो जाना
अपने सुख में खो जाना
क्या जिंदगी इसी को कहते हैं|
दिल्ली के लिए दिल से सोचे और हम सब मिल कर कुछ करे तभी दिल्ली का रूप सवरेगा नहीं तो चार दिन के चादनी फिर अधेरी रात वाली बात दिल्ली पर सच हो जायेगी|
Subscribe to:
Posts (Atom)