Sunday, April 12, 2009

बिखरी-छितरी दिल्ली

न जाने दिल्ली का क्या होगा,हर तरफ भीड़ ही भीड़ दिखाई देती हैं,लोग एक दूसरे पर चढ़ने को बेताब रहते हैं| वैसे तो हर तरफ भीड़ का बुरा हाल हैं पर जो हाल मेरी आखो ने देखा हैं वो ही आप लोगो को बताऊगी|चिराग दिल्ली फ्लाई ओवर के पास भीड़ एक दूसरे पर चढ़ने को उत्सुक रहती हैं अगर थोडा ध्यान इधर उधर हुआ सब एक दूसरे पर चढ़ जायगे फिर कुतुबमीनार से ऊची चोटी तेयार हो जायेगी इसमें कोई शक नहीं|
एक कार वाला चाह रहा हैं एक और कार,एक घर वाला चाह रहा हैं एक बडा बागला| किसके इशारे पर बहु-मजिल इमारते पर इमारते बनती जा रही हैं maal per maal बन रहे है, स्वच्छ दिल्ली हरियाली दिल्ली के पेडो का बुरा हाल है, आने वाले समय में सबको पानी बिजली मिले इसकी कोई गारेन्टी नहीं हर पार्टी नेता अपनी छवि सवारने में लगा हैं देश की चिंता नहीं| शिक्षा और शिक्षक का बुरा हाल हैं सब जेब भर रहे हैं दिमाग का हाल खराब हैं सब बिना मकसद के भाग रहे हैं पता नहीं कहाँ जाना हैं|
दिल्ली का सुधार हो रहा हैं या फिर बंटाधार पता ही नहीं चल रहा लोगो को ऐसा लगता हैं| मौल के रूप में सुंदर सी मजिल तो बन जाती हैं पर आस-पास का हाल पूरा हो जाता हैं|आस-पास का हाल सुधार होने में कितना वक्त लगेगा पता नहीं,गरीब-मजदूर को थोड़े दिन का आसरा जरुर मिल जाता हैं उस मॉल के आस -पास जिसमे शायद वो कभी नहीं जा पायेगा|
हम सोच रहे हैं दिल्ली का सुधार हो रहा हैं पर मैं सोच रही हूँ दिल्ली का हाल बुरा हो रहा हैं|{अगर घर में पाच कमरे हो उनमे से एक कमरे को सारी सुविधए देने से पूरा घर सही नहीं हो जाता, मेरे कहने का अर्थ आप समझ गए होगे दिल्ली को पेरिस बना देने से पूरा भारत पेरिस नहीं हो जाता आधे से ज्यादा लोग यहाँ आज भी भूखे हैं| गाँव का खास कर पिछडे इलाके का बुरा हाल हैं| ये बात सारी पार्टिया और नेता जानते हैं जिन्हें चुनाव के समय सब याद आता लेकिन बाद में वही ढाक के तीन पात, सब पन्नो में रह जाता हैं|
हर तरफ से लोग दिल्ली में आ कर बस रहे हैं क्यों? क्या कभी आपने सोचा है दो वक्त की रोटी के लिए, अपने घर छोड़ कर लोग यहाँ आ रहे हैं पार्टियाँ और नेता जानता की सोचते हैं तो गावं का सुधार करे और पिछडे इलाके को सुविधए दे{बिजली और पानी} ताकि गावं का आदमी दिल्ली की और न भागे|
परिवर्तन का अर्थ पुराना को छोड़ना नहीं बल्कि नये के साथ मिल के पुराना को सुधारना हैं, जो शायद दिल्ली में नहीं हो रहा इसिलये यहाँ सुधार तो हो रहा है पर कुछ यहाँ खो भी रहा हैं| हरियाली नाम मात्र की रह गयी हैं,वी. आई. पी. के पास सब है हरियाली और रास्ता भी|
जब कभी दिल्ली में पार्को में जाओ{एक आध को छोड़कर} छोटे-छोटे पेड़ ही ज्यादा नजर आते हैं छायादार पेड़ नहीं| यहाँ एक बात कहना चाहती हु हमारे घर के पास एक बहुत बडा पार्क था जो है भी,1999 में जब हम वहा जाते थे तब वहाँ तमाम नीम के हरे-हरे पेड़ और हरियाली थी और आज वहा सब सुखा-सुखा नज़र आता है वेसे तो सारी दिल्ली सुख रही है जो इलाके हरे-भरे थे वहां भी इमारते पे इमारते बनती जा रही हरियाली खत्म हो रही है पानी का बुरा हाल है| जितने भी माल है उनमे झरने आपको चलते मिल जायेगे,चाहे लोगो नहाने और पीने को पानी न हो|
यहाँ-वहां जहा-तहां मत पूछो, कहाँ-कहाँ हैं पुलों की बहार
दिल्ली हो रही बेकार| दिल्ली हो रही बेकार|
इधर भी खुद रहा उधर भी खुद रहा,
न इधर का पूरा हुआ,न उधर का हुआ|
इमारत बन जाने से,maal per maal बन जाने से
फायद किसको हुआ जेब किसकी भरी,
तुम जानते हो हम भी जानते हैं
पर चुप हैं सब ,कुछ कब मानते हैं|
काम पर जाना और आना
टीवी देखना और सो जाना
अपनी उलझनों में खो जाना
अपने सुख में खो जाना
क्या जिंदगी इसी को कहते हैं|
दिल्ली के लिए दिल से सोचे और हम सब मिल कर कुछ करे तभी दिल्ली का रूप सवरेगा नहीं तो चार दिन के चादनी फिर अधेरी रात वाली बात दिल्ली पर सच हो जायेगी|

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