Friday, March 5, 2010

मन का भ्रम

मन के साथ उड़ रहा है मन,
पखं पसारे-
जान के अनजान है-
मन,मन से परेशान है|
कुछ हाथ नहीं आएगा-
मन समझ नहीं पायेगा|
चाँद की है चांदनी-
आकाश के है तारे|
धरती का आकाश,
फूल की सुगधं
कुछ नहीं मन के संग|
तू क्यों पखं पसारे
दिल के पिंजरे में-
कैद हो जा मन|
क्यों तू पखं पसारे-
छिप के नीर बहा ले|
मन तू मन को समझ ले
मन तू मन को बहला ले|
मन को मन कही बहका न ले|

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