Friday, July 17, 2009

धरती का दर्द समझो
हर रोज मुझे खोदा जाता है,
हर रोज मेरे बालो को नोचा जाता है,
मेरे हाथो को तोडा जाता है,
मेरे बच्चे मुझ से छीने जाते है|
हर तरह का जुल्म मुझ पर किया जाता है|
फिर भी मैं तुम सब को देती आई हु|
और दे रही हु |
मेरे छाती में अब और नहीं-
ईट,सरिये ,पत्थर डालो,
कुछ तो ठडक पहुचे छाती में
ऐसा कुछ कर डालो|
बादल बरसे ऊपर से तुम प्रेम-
के बीज डालो,
कुछ करे दया अम्बर और -
कुछ तुम कर डालो|
मेरा दर्द जब हद से ज्यादा,
बढ़ जायेगा फिर कुछ सम्भल नहीं पायेगा |

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