Friday, July 17, 2009

एक शाम की बात
हर रोज की तरह उस शाम को चाय का कप ले कर अपनी बालकनी में खडी थी| इतने में एक सात-आठ साल का लड़का हाथ में इक भारी बोरी और इक में लकडी के कोयले लिए भाग कर आया और जगह बना कर सडक के किनारे बैठ गया,फिर उसने अपना स्थान साफ किया और तीन ईट रख कर फिर लोहे की जाली में कोयले डालकर उसे जलाया फिर एक गत्ते से उसे तेज हाथो से हवा करने लगा|
कोयले जब ठीक से जलने लगे तो उसने अपने बोरे से भुट्टे निकाल कर उस कोयले की आग में रखने शुरू कर दिए | अब उसने अपने हाथो की हवा और तेज कर दी,उस आग में तीन-चार भुट्टे रख दिए और लगातार हाथो से तेज हवा करता रहा|मैंने अपनी चाय खत्म की और सब्जी भी जो पहले से कटी थी उसे गैस पर रख दी फिर थोड़े से बर्तन धोकर फिर उसी स्थान पर आ गयी और उसी छोटे से लडके को देखने लगी जो अभी भी तेज हाथो से हवा किये जा रहा था और भुट्टे भुने जा रहा था|
धीरे-धीर उसकी मेहनत रंग लायी और उसके भुट्टे बिकने लगे,उसकी ख़ुशी चेहरे से कम हाथो से ज्यादा झलक रही थी, जो लगातार हवा किये जा रहे थे|मुझे पता लगा गया था की भुट्टे पॉँच-सात रूपये से ज्यादा का नहीं है| देखते- देखते उसके भुट्टे बिक गए, मेरी सब्जी भी बन गयी थी, मैंने गैस बंद कर दी फिर उसी स्थान पर आ गयी|
अपने सारे भुट्टे बिकने की ख़ुशी में वो सारा सामान समेट कर, अपनी बोतल से पानी पिया जो गर्म होने पर भी उसे शायद शीतल पेय लग रहा था सारा पानी पी कर झूमता हुआ अपने घर की और चला गया| दुबारा उसी जोश और ख़ुशी के साथ आने के लिए|
मुझे पता हैं वो बिना सुविधा के घर में चैन की नीद सोयेगा,वही दूसरी तरफ सभी सुविधा से सम्पन घरो में कुछ लोग सारी-सारी रात करवट बदल कर काटते है आखिर क्यों?????

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