Monday, March 7, 2011

पगली प्रीत

पगली प्रीत
तुम क्या जानो तुमने कितना -
मेरा दिल दुखाया है |
फिर भी तुमको समझ के अपना -
सब-कुछ हमने भुलाया है |
तुमने जाने-अनजाने में कभी -
हमको हँसाया था |
आज उसी हँसी के बदले -
सौ-सौ आसू रुलाया है |
बहुत कुछ सीख रहे है जग से -
कुछ सीख लिया तुमसे |
कितने सीधे सरल थे हम -
आज समझ में आया है |
तुम क्या जानो चाँद -चांदनी ,
टीम-टीम तारे प्यार-विश्वाश |
जिसे चाँद में सिर्फ दूर से -
दाग ही नंजर आया है |
बहुत आसां होता है भँवरे -
कलियों में इतराना -मडराना |
कभी किसे कली का प्यार -
तुझको ना समझ आया है |
हसना तो हम भूल गए थे -
रोना भी आता है कम |
आज उसे पलको पे उठाकर -
बहुत आसू बहाया है |
क्रमशा

1 comment:

  1. विरह की वेदना को आपने बेहतर तरीके से शब्दों में उतारा है। आभार।

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