Monday, March 2, 2009

एक तमन्ना


एक तमन्ना उड़ मैं जाऊ,
नील गगन को छु के आऊ|
एक इच्छा ऐसी मन में,
छिपू किसी को नज़र न आऊ|
एक ख्वाहिश उठी है मन में,
ऐसी बिखरू सिमट न पाऊ|
एक तमन्ना ऐसी मन में,
ऐसी उलझू,उलझती जाऊ ,
किसी से सुलझ न पाऊ|
एक इच्छा जागी है मन में,
नये साचे में ढल के ऑऊ,
सबके मुख पे हंसी बन छाऊ,
आखिरी तमन्ना है इस मन की-
कली,झरना,बादल,तितली,
या फिर पर्वत बन जाऊ|
कली बन बाग़ महकाऊँ,
झरना बन बहती जाऊँ,
पर्वत बन स्थर हो जाऊँ|
हर किसी के काम मैं आऊँ|

No comments:

Post a Comment